July 13, 2025 5:10 am

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* बीएचयू अस्पताल टेंडर में जालसाजी व धोखाधड़ी के अभियुक्तगण उदयभान सिंह एवं रजनी सिंह को नहीं मिली उच्च न्यायालय से राहत

* बीएचयू अस्पताल टेंडर में जालसाजी व धोखाधड़ी के अभियुक्तगण  उदयभान सिंह एवं रजनी सिंह को नहीं मिली उच्च न्यायालय से राहत

* नोबल स्टार हेल्थ सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड के निदेशकों के विरुद्ध दर्ज प्राथमिकी यथावत रहेगी

* पुलिस को 90 दिनों के भीतर विवेचना पूर्ण कर आवश्यक विधिक कार्यवाही करने का निर्देश

* उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी स्पष्ट किया है कि यदि अभियुक्तगण पुलिस जाँच में सहयोग नहीं करते हैं, तो उनके विरुद्ध विधिसम्मत उचित दण्डात्मक कार्रवाई की जा सकती है

* दिनांक 30 मई 2025 को प्रो. एस.एन. संखवार, निदेशक, आईएमएस बीएचयू द्वारा लंका थाने में दर्ज कराई गई थी प्राथमिकी.

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान से संबंधित टेंडर प्रक्रिया में कथित जालसाजी एवं कूटरचित दस्तावेजों के प्रयोग के गंभीर आरोपों में फंसे उदयभान सिंह एवं रजनी सिंह, निदेशकगण नोबल स्टार हेल्थ सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड, को इलाहाबाद उच्च न्यायालय से बड़ा झटका लगा है।

अभियुक्तगण द्वारा दायर याचिका, जिसमें प्राथमिकी को निरस्त करने एवं गिरफ्तारी पर स्थगन की प्रार्थना की गई थी, न्यायमूर्ति सिद्धार्थ एवं न्यायमूर्ति हरवीर सिंह की द्वैधपीठ द्वारा खारिज कर दी गई है। न्यायालय ने पुलिस को निर्देशित किया है कि वह 90 दिनों के भीतर विवेचना पूर्ण कर विधिक प्रक्रिया को यथासमय आगे बढ़ाए।

प्रकरण का उद्गम अगस्त 2024 में बीएचयू अस्पताल द्वारा पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल के अंतर्गत जारी टेंडर से है, जो डायग्नोस्टिक इमेजिंग सेवाओं एवं अन्य चिकित्सीय कार्यों के लिए आमंत्रित किया गया था।

प्राथमिकी में यह आरोप है कि अभियुक्तगण ने टेंडर में भाग लेने हेतु दो कूटरचित अनुभव प्रमाणपत्र संलग्न किए तथा सात रेडियोलॉजिस्ट चिकित्सकों के जाली हस्ताक्षर कर फर्जी नियुक्ति अनुबंध पत्र प्रस्तुत किया, जिससे बीएचयू प्रशासन को धोखा देने का प्रयास किया गया।

 

दिनांक 30 मई 2025 को प्रो. एस.एन. संखवार, निदेशक, इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ (आईएमएस) द्वारा उक्त तथ्यों के आधार पर लंका थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई गई, जिसमें भारतीय न्याय संहिता की धारा 336(3), 338, 340(2), 318(4), 61(2)(ए) के अंतर्गत गंभीर आरोप लगाए गए हैं।

 

याचिका में अभियुक्तों ने अपने कृत्य को उचित ठहराने का प्रयास करते हुए प्राथमिकी को निरस्त करने की मांग की थी, जिसे उच्च न्यायालय ने तथ्यों एवं साक्ष्यों के आधार पर अस्वीकार कर दिया। उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि प्रथम दृष्टया प्रकरण गंभीर प्रकृति का है, एवं पुलिस को निर्देशित किया कि विवेचना शीघ्रतिशीघ्र निष्पादित कर आरोपपत्र दाखिल किया जाए।

उच्च न्यायालय से राहत न मिलने के फलस्वरूप अब अभियुक्तों की विधिक समस्याएँ और गहरा गई हैं। पुलिस द्वारा प्रकरण में सक्रिय रूप से विवेचना की जा रही है तथा न्यायालय द्वारा निर्देशित समयसीमा में विधिक प्रक्रिया आगे बढ़ेगी।

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Author: Liveupweb

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