July 13, 2025 6:59 pm

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250 साल पुरानी बनारसी साड़ी का क्रेज; अब नई पीढ़ी तैयार कर रही खास साड़ी, कभी पहनती थीं राज घराने की महारानी

250 साल पुरानी बनारसी साड़ी का क्रेज; अब नई पीढ़ी तैयार कर रही खास साड़ी, कभी पहनती थीं राज घराने की महारानी

️वाराणसी :16वें वित्त कमीशन के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया बीते दिन वाराणसी दौरे पर थे, जहां उन्होंने बनारस के अलग-अलग स्थानों को देखा. उन्होंने बनारस में 250 साल पहले तैयार हुई अनोखी बनारसी साड़ी को भी देखा, जो सोने-चांदी के तारों से बनी हुई थी, जिसके वो मुरीद हो गए. इस दौरान उन्होंने इसे सहेजने का सुझाव दिया. इसके साथ उन्होंने इस एंटीक साड़ी को बनाने के तरीके को भी देखा. ऐसे में हम आपको 250 साल पहले तैयार हुई उस अनोखी ऐतिहासिक साड़ी को दिखाने जा रहा जिसे बनारस में राज घराने की महारानी पहनतीं थीं.

️आज हम आपको ऐसे ही एक एंटीक साड़ी के बारे में बताने जा रहे हैं जो रेशम पर सोने व चांदी के तारों से तैयार की गई हैं. ये 250 साल पुरानी साड़ी हैं, जिसे बनारस में एक बिनकारी परिवार के जरिए सहेजा जा रहा है. उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी बिनकारी का काम करती आ रही है और वह इन पुरानी साड़ियों से अब नई साड़ियों को रीक्रिएट कर रहे हैं. साथ ही इन डिजाइनों को सुरक्षित भी रख रहे हैं.

सोने चांदी से बनी है 250 साल पुरानी साड़ी
️इस बारे में पुराने पुश्तैनी व नई साड़ियों को रीक्रिएट करने वाले सुविधा साड़ी इंडिया प्रा.लि. के चेयरमैन अमित शेवारामानी बताते हैं कि, हमारे पास 200 ढाई सौ साल पुरानी राजा महारानी की साड़ियां हैं, जिसे अब हम नए सिरे से रीक्रिएट कर रहे हैं. 16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया हमारे यहां इन साड़ियों को देखने आए थे, जहां उन्हें हम लोगों ने 250 साल पुरानी मक्खी बूटी, गुलदाउदी एंटीक जरी से बनी हुई साड़ियां दिखाईं, जिसे देखकर वह भी हैरान हो गए.

 

बनारस में तैयार की गई खास साड़ी
️उन्होंने बताया कि, यह साड़ियां रेशम पर सोने और चांदी के तारों से तैयार होती हैं. वह कहते हैं कि हमारे पास 250, 200 साल पुरानी दर्जनों साड़ियां हैं, जिसे हम लोग रखे हुए हैं. इसको लेकर वित्त आयोग के अध्यक्ष ने हमें म्यूजियम भी बनाने की सलाह दी, जिस पर हम काम कर रहे हैं और इन साड़ियों को म्यूजियम में रखेंगे. वर्तमान समय में हम इसे रीक्रिएट कर रहे हैं, जिनकी डिमांड भी हमारे पास खूब आ रही है.

 

पहले 6 महीने में तैयार होती थी साड़ी
️उन्होंने बताया कि, हम लोग उस समय की डिजाइन को निकाल करके साड़ियों पर अलग-अलग तरीके से तैयार कर रहे हैं. इन साड़ियों को तैयार करने में दो से ढाई महीने का समय लगता है और वर्तमान में इन्हें चांदी के तारों से बनाया जाता है, जिसकी कीमत डेढ़ से ढाई लाख रुपये होती है. इसे तैयार करने में 3 से 4 बुनकर लगते हैं. इसका पूरा काम हाथों के जरिए किया जाता है. हम अब चांदी के तार पर सोने की पॉलिश कर उसे गोल्डन और सिल्वर जरी के रूप में प्रयोग में लाते हैं. वह बताते हैं कि समय के साथ इन साड़ियों की डिमांड भी बढ़ती जा रही है. यदि 250 साल पहले इन साड़ियों के बनावट के बारे में बात करें तो इसे तैयार करने में 6 से 7 महीने का वक्त लगता था और यह साड़ी पूरी सोने के जरिए तैयार होती थी.

 

खूब पसंद की जा रही हैं साड़ियां
️वह बताते हैं कि राजा महाराजाओं में सबसे ज्यादा साड़ियां शिकारगाह, गुलदाउदी बूटी, मक्खी बूटी, एंटीक जरी वर्क, जाल वर्क, ताज महल, अलग-अलग तरीके के ऐतिहासिक धरोहरों के डिजाइन, कैरी कोना बॉर्डर, चांद लगायत अन्य तरीके के काम किए जाते थे. जिन्हें अब हम लोग मॉडर्न तरीके से नई-नई साड़ियों पर तैयार कर रहे हैं. जिसे वर्तमान समय में भी खूब पसंद किया जा रहा है.

विदेशों में अब भी है इनकी डिमांड
️बताते हैं कि अब तक हम लोगों ने ढाई सौ साल पुरानी इन साड़ियों की सैकड़ों साड़ियां तैयार कर दी होंगी, जिसे ग्राहक पसंद कर रहे हैं. पूरे भारत के साथ-साथ विदेश में भी इन साड़ियों की डिमांड देखने को मिलती है. लंदन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, सिंगापुर, स्विट्जरलैंड जैसे देशों में भी इन साड़ियों को खूब पसंद किया जा रहा है. एक ग्राहक बताती हैं कि हमने पहले बनारस में कभी भी ऐसी पुराने डिजाइन की साड़ी नहीं देखी थी, जो इतनी रॉयल है, लेकिन अब यह साड़ियां दिख रही हैं. हमें मिल रही हैं, यह हमारे लिए बहुत अच्छी बात है.

दो तरह से तैयार होती है बनारसी साड़ी
️बनारस में मुख्यतः दो तरीके की साड़ियां बनाई जाती हैं. एक कड़वा और दूसरी फेकुआ. जब साड़ी को डहरी पर बुना जाता है उस समय कारीगर सिरके से डिजाइन को बनाता है. जहां दो लोगों के जरिए एक साड़ी की बुनाई होती है. पूरा काम हाथों के जरिए होता है. जिसे हम कड़वा साड़ी कहते हैं. इसे तैयार करने में ढाई महीने का वक्त लगता है. इसमें पूरा काम हाथों के जरिए होता है.

इसमें करी से लेकर के फूल पत्ती, झाल अलग-अलग तरीके की डिजाइन बनाई जाती है. इसके साथ ही इसे पूरे जरी प्योर रेशम पर तैयार किया जाता है. वहीं फेकुआ साड़ी की बात करें तो इसे आसानी से पावर लूम पर तैयार किया जाता है, जिसे बनाने में बेहद कम समय लगता है. यह साड़ियां जल्दी तैयार कर ली जाती हैं, इसलिए इनकी कीमत भी कम होती है, जबकि कड़वा साड़ियां महंगी होती हैं.️गौरतलब हो कि, राजघराने के लोग सोने-चांदी की जरी के जरिए तैयार हुई बनारसी साड़ियों को पहनते थे. इन साड़ियों पर फूल-पत्ती जाली का काम होता था. इसके साथ ही उनसे जुड़ी हुई इमारत देवी-देवताओं की तस्वीर भी देखने को मिलती थी. वहीं आधुनिक समय में जीआई टैग मिलने के बाद बनारसी साड़ी की पहचान बिल्कुल बदल गई है.

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Author: Liveupweb

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