मरवटिया में ‘मिनी सचिवालय’ का मकबरा: फरमान हवा में, अफसर लापता!
Chandauli News: नौगढ़ तहसील क्षेत्र के मरवटिया गांव में विकास की नींव खोदी गई थी, लेकिन भ्रष्टाचार के दीमक ने उसे पनपने नहीं दिया। ग्राम पंचायत में लाखों की लागत से बनने वाला मिनी सचिवालय आज भी अधूरा खड़ा है, मानो किसी भूली- बिसरी कहानी का कंकाल हो। ग्रामीणों के लिए यह सचिवालय एक सफेद हाथी साबित हो रहा है, जो फाइलों में तो दर्ज है, लेकिन हकीकत में लापता है।
दीवारें खड़ी, विकास लापता
मिनी सचिवालय के नाम पर गांव में सिर्फ ईंटों की दीवारें खड़ी हैं। छत गायब है, दरवाजे और खिड़कियां कब लगेंगे, किसी को नहीं मालूम। यह अधूरा ढांचा सरकारी उदासीनता और भ्रष्टाचार की जीती-जागती तस्वीर पेश करता है। ग्रामीणों को तो यह भी नहीं पता कि यह सचिवालय आखिर बनना कहां था और अब इसकी क्या स्थिति है।
ग्रामीणों की मजबूरी, अफसरों की दूरी
जिलाधिकारी ने फरमान जारी कर दिया है कि सभी सचिवालय खुलने चाहिए। लेकिन मरवटिया के ग्रामीणों के लिए यह फरमान किसी मजाक से कम नहीं है। जब सचिवालय ही नहीं है, तो खुलेगा क्या? ग्रामीण आज भी आय, जाति, निवास और जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने के लिए नौगढ़ बाजार के कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) के चक्कर काटने को मजबूर हैं। उनकी गाढ़ी कमाई और बहुमूल्य समय बर्बाद हो रहा है, लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों के कानों तक यह आवाज नहीं पहुंच रही।
बीडीओ साहब ‘आउट ऑफ कवरेज’
इस गंभीर मुद्दे पर जब खंड विकास अधिकारी अमित कुमार से संपर्क करने की कोशिश की गई, तो उनका मोबाइल फोन हमेशा ‘पहुंच से बाहर’ बताता रहा। क्या यह तकनीकी खराबी है या फिर अधिकारियों की ग्रामीणों की समस्याओं से मुंह मोड़ने की आदत? यह सवाल अब हवा में तैर रहा है।
मरवटिया का यह अधूरा मिनी सचिवालय विकास के दावों की पोल खोलता है। यह दिखाता है कि कैसे सरकारी योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं और आम आदमी अपनी मूलभूत सुविधाओं के लिए भी तरसता रह जाता है। अब देखना यह है कि जिलाधिकारी के फरमान के बाद यह ‘मकबरा’ कब तक अस्तित्व में आता है या फिर यह हमेशा सरकारी लापरवाही का स्मारक बनकर ही खड़ा रहेगा।
