आधुनिक और डिजिटल युग में रिश्ते नाते बस नाम के ही है
प्रेम समर्पण और स्नेह की मूल भावना विलुप्त हो चली
90 के दशक और आज के दौर में समय बहुत बदल गया

भारत में 90 के दशक की जीवनशैली और अपनत्व 90 का दशक भारत के लिए एक अनूठा और परिवर्तनकारी दौर था। यह वह समय था जब भारत आर्थिक उदारीकरण के दौर से गुजर रहा था, जिसने न केवल अर्थव्यवस्था को बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन को भी प्रभावित किया। उस समय की जीवनशैली और अपनत्व आज के डिजिटल युग से बिल्कुल अलग थे। यह वह युग था जब लोग सादगी, अपनत्व और आपसी जुड़ाव में विश्वास रखते थे
90 के दशक में भारतीय मध्यमवर्गीय परिवारों की जीवनशैली अत्यंत सादगीपूर्ण थी। अधिकांश घरों में टीवी, रेडियो और टेलीफोन ही मनोरंजन और संचार के मुख्य साधन थे। दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले सीरियल जैसे रामायण, महाभारत, हम लोग और बुनियाद पूरे परिवार को एक साथ टीवी के सामने लाते थे। बच्चे गर्मियों की छुट्टियों में गलियों में क्रिकेट खेलते, पतंग उड़ाते या साइकिल पर आसपास के मोहल्लों में घूमते थे। मोबाइल फोन और इंटरनेट का चलन न होने के कारण लोग आमने-सामने बातचीत को महत्व देते थे। पड़ोसियों के बीच एक खास रिश्ता था, जहां लोग एक-दूसरे के सुख-दुख में शामिल होते थे
90 के दशक में अपनत्व भारतीय समाज की आत्मा थी। पड़ोसियों को परिवार का हिस्सा माना जाता था। पड़ोस की आंटी-चाची बच्चों को डांटने से लेकर उनके लिए खाना बनाने तक में सहज थीं। त्योहारों का उत्साह पूरे मोहल्ले में फैलता था। दीवाली, होली, ईद या क्रिसमस जैसे अवसरों पर लोग एक-दूसरे के घर जाते, मिठाइयां और उपहार बांटते। बच्चे बिना किसी डर के पड़ोस के घरों में खेलने जाते, और माता-पिता को इस बात की चिंता नहीं होती थी कि उनका बच्चा कहां है। स्कूलों में भी शिक्षक और छात्रों के बीच एक आत्मीय रिश्ता होता था, जहां शिक्षक न केवल पढ़ाते, बल्कि बच्चों के जीवन को दिशा भी देते थे।बदलते परिदृश्य और तकनीक
90 के दशक में तकनीक का प्रवेश धीरे-धीरे हो रहा था। आर्थिक उदारीकरण के बाद विदेशी ब्रांड्स जैसे कोकाकोला, पेप्सी और विदेशी टीवी चैनल भारतीय बाजार में आए। वीसीआर और कैसेट प्लेयर ने मनोरंजन के नए रास्ते खोले। बच्चे शक्तिमान जैसे सुपरहीरो शो के दीवाने थे, जबकि युवा एमटीवी और पॉप म्यूजिक की ओर आकर्षित हो रहे थे। फिर भी, तकनीक ने उस समय अपनत्व को प्रभावित नहीं किया था। लोग पत्र लिखते, लैंडलाइन पर घंटों बातें करते और सामाजिक मेलजोल को प्राथमिकता देते
90 के दशक की जीवनशैली और अपनत्व आज की पीढ़ी के लिए एक नॉस्टैल्जिक याद की तरह है। आज डिजिटल दुनिया ने जहां सुविधाएं बढ़ाई हैं, वहीं व्यक्तिगत रिश्तों में दूरी भी ला दी है। उस दौर की सादगी, सामुदायिकता और आपसी विश्वास आज के समय में दुर्लभ हो गए हैं। फिर भी, 90 के दशक की यादें हमें यह सिखाती हैं कि सच्चा सुख रिश्तों और अपनत्व में ही निहित है। यह वह दौर था, जब कम संसाधनों में भी लोग खुशहाल और एक-दूसरे से जुड़े हुए थे।
90 का दशक भारतीय समाज के लिए एक सुनहरा दौर था, जहां सादगी और अपनत्व जीवन का आधार थे। यह समय हमें यह सिखाता है कि तकनीकी प्रगति के साथ-साथ हमें अपने रिश्तों और सामुदायिकता को भी संजोकर रखना चाहिए। उस दौर की यादें आज भी हमारे दिलों में बसी हैं, जो हमें यह बताती हैं कि सच्ची खुशी सादगी और आपसी प्रेम में ही छिपी है।








Users Today : 17
Users Yesterday : 28