Chandauli News:बरबसपुर का ‘मिनी’ रहस्य: विकास की गुमनाम राह और जवाबदेही की तलाश
सुनील कुमार
चंदौली
Chandauli News:नौगढ़ तहसील का बरबसपुर गांव। नाम में ही बसता है एक विरोधाभास – ‘बरबस’ और ‘पुर’। लगता है, विकास भी यहां ‘बरबस’ ही आएगा, शायद किसी भूले-भटके राहगीर की तरह। बरसों से इस गांव के लोग एक अदद मिनी सचिवालय की आस लगाए बैठे हैं। सोचा था, सरकारी योजनाओं की चाबी यहीं मिलेगी, सुख-सुविधाओं की गंगा यहीं से बहेगी। मगर, इंतजार है कि खत्म होने का नाम ही नहीं लेता।
नींव का नीम हकीम, खतरा जानलेवा
लगभग दो साल पहले उम्मीद की एक किरण फूटी थी। मिनी सचिवालय के लिए ज़मीन खोदी गई, नींव का पत्थर रखने की तैयारी हुई। फिर, अचानक ऐसा क्या हुआ कि काम ठप पड़ गया? अब वह अधूरी नींव एक गहरे गड्ढे की तरह मुंह बाए खड़ी है। राह चलते लोग, खासकर मासूम बच्चे, कब इसमें गिर जाएं, कहना मुश्किल है। यह विकास का अधूरा सपना नहीं, बल्कि एक खुला खतरा है।
सपनों का सौदागर और हकीकत की धूल
ग्रामीणों की मानें तो सरकार तो विकास की झड़ी लगाए बैठी है, पर बरबसपुर तक उसकी एक बूंद भी नहीं पहुंची। मिनी सचिवालय जैसी बुनियादी चीज़ भी नसीब नहीं। हाल ही में ज़िलाधिकारी साहब ने सभी मिनी सचिवालयों को खोलने का फ़रमान जारी किया था। अब उन्हें कौन बताए कि बरबसपुर में तो सचिवालय का भवन ही नहीं है, खुलेगा क्या? शायद कागज़ों पर ही इसका उद्घाटन हो गया होगा!
बोर्ड का बहुरूपिया, कामकाज गुमशुदा
कहते हैं, गांव के मुखिया जी ने पहले अपने घर पर एक बोर्ड टांगकर उसे ही मिनी सचिवालय घोषित कर दिया था। यह तो ऐसा हुआ जैसे अपनी जेब से निकालकर दान कर दिया हो! अब खबर है कि ग्रामीणों को और ज़्यादा ‘गुमराह’ करने के लिए कंपोजिट विद्यालय में भी एक बोर्ड लगा दिया गया है। असली कहानी तो यह है कि पंचायत का सारा कामकाज मुखिया जी के घर से ही चलता है, जिसकी भनक किसी ग्रामीण को नहीं लगने दी जाती। मुखिया जी से बात करने की कोशिशें नाकाम रहीं, शायद वह विकास के ‘गूढ़’ रहस्यों को सुलझाने में व्यस्त होंगे।
पंचायत सहायक की बेबसी, मोबाइल बना दफ़्तर
उधर, पंचायत सहायक अपनी मजबूरी का रोना रो रहे हैं। कहते हैं, पंचायत भवन तो बना ही नहीं। विद्यालय में बोर्ड ज़रूर टंग गया है, मगर पंचायत के कंप्यूटर और ज़रूरी सामान मुखिया जी के घर की शोभा बढ़ा रहे हैं। अब पंचायत सहायक बेचारे अपना सारा काम अपने मोबाइल फोन से ही निपटाते हैं।
डिजिटल इंडिया का असली चेहरा तो यहीं दिखता है!
अफ़सरों की अनदेखी, विकास की बलि
खंड विकास अधिकारी अमित कुमार से भी संपर्क साधने की कोशिश की गई, लेकिन वह भी ‘विकास’ की दौड़ में कहीं आगे निकल गए, शायद। ग्रामीणों का मानना है कि अफ़सरों और मुखिया जी की मिलीभगत से ही मिनी सचिवालय का काम अटका पड़ा है। गांव के विकास की गाड़ी इसीलिए हांफ रही है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बरबसपुर का यह ‘मिनी’ रहस्य कब खत्म होता है और ग्रामीणों को विकास का ‘महा’ लाभ कब मिलता है।
