भ्रष्टाचार के मकड़जाल में उलझी जनता और कड़े कदमों की आवश्यकता :- संतोष सिंह
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आज आम जनता भ्रष्टाचार की समस्या से त्रस्त और बेचैन है, क्योंकि छोटे से छोटे काम के लिए भी सरकारी दफ्तरों में रिश्वत का चलन आम हो चुका है। देश में शायद ही कोई ऐसा विभाग बचा हो, जहाँ बिना पैसे दिए कोई काम हो जाए। इस स्थिति ने आम नागरिक का सरकारी व्यवस्था पर से भरोसा लगभग खत्म कर दिया है।

भ्रष्टाचार रूपी यह दीमक देश को भीतर से खोखला कर रहा है। बीते वर्षों में हुए भ्रष्टाचार से जुड़े विभिन्न सर्वेक्षण भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि लोगों की धारणा में सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार का स्तर बढ़ा है। पारदर्शिता और जवाबदेही के लाख दावे किए जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। एक आम आदमी को अपना हक पाने के लिए भी भ्रष्ट व्यवस्था के आगे घुटने टेकने पड़ते हैं। यह स्थिति न केवल आर्थिक विकास में बाधा बनती है, बल्कि सामाजिक असमानता और विभाजन को भी बढ़ाती है।
हाल ही में, अपराधियों और भू-माफियाओं पर हुई बुलडोजर जैसी कठोर कार्रवाई को जनता ने सराहा है। इसी तर्ज पर, लोगों में यह भावना जोर पकड़ रही है कि भ्रष्टाचारियों पर भी ऐसी ही सख्त कार्रवाई की जाए। जिस प्रकार अपराधियों को कानून का डर दिखाया गया है, उसी तरह भ्रष्टाचार में लिप्त सरकारी अधिकारियों और दलालों के खिलाफ भी कड़े कदम उठाए जाने चाहिए। यह माँग बेवजह नहीं है। भ्रष्टाचार का सीधा असर आम लोगों के जीवन पर पड़ता है—गरीबों को योजनाओं का लाभ नहीं मिलता, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएँ भी रिश्वतखोरी की भेंट चढ़ जाती हैं। ऐसे में जनता का आक्रोश जायज है।
सरकार ने भ्रष्टाचार से निपटने के लिए ई-गवर्नेंस, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) और ई-टेंडरिंग जैसी कई पहल की हैं। लेकिन इन प्रयासों के बावजूद, जब तक भ्रष्टाचारियों के मन में कानून का डर नहीं बैठेगा, तब तक स्थिति में बड़ा बदलाव आना मुश्किल है। केवल कानून बनाना ही काफी नहीं है, बल्कि उसका कठोरता से पालन करवाना भी जरूरी है।
जनता की बेचैनी को शांत करने और व्यवस्था में विश्वास बहाल करने के लिए अब यह जरूरी है कि:
भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ बिना किसी पक्षपात के सख्त से सख्त कार्रवाई हो।
भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच में तेजी लाई जाए और ऐसे मामलों का निपटारा फास्ट ट्रैक अदालतों में किया जाए।
सरकार की भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसियों को और अधिक अधिकार और स्वायत्तता दी जाए।
भ्रष्टाचारियों की संपत्ति जब्त करने जैसे कठोर कदम उठाए जाएँ।
हमें यह समझना होगा कि भ्रष्टाचार केवल एक अपराध नहीं, बल्कि एक सामाजिक बुराई है जो पूरे तंत्र को दूषित करती है। सरकार को जनता की इस माँग पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और भ्रष्टाचारियों को यह संदेश देना चाहिए कि वे कानून के दायरे से बाहर नहीं हैं।








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