कफ सिरप तस्करी कांड: वाराणसी से बांग्लादेश तक…
किसकी छत्रछाया में पल रहा है नेटवर्क?
विपिन सिंह
गाजियाबाद में पकड़ी गई प्रतिबंधित कफ सिरप की भारी खेप ने तस्करी के एक ऐसे नेटवर्क का पर्दाफाश किया है, जिसकी कड़ियां वाराणसी से लेकर बांग्लादेश तक फैली बताई जा रही हैं। गाजियाबाद की नंदग्राम थाना पुलिस ने वाराणसी के सिगरा निवासी शुभम जायसवाल को इस तस्करी गिरोह का मुख्य सरगना माना है। मामले में उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जा चुका है और अब वाराणसी कमिश्नरेट पुलिस से उसके बारे में विस्तृत जानकारी मांगी गई है।
लेकिन असली सवाल यहां से शुरू होते हैं-
एक साधारण मेडिकल स्टोर पर कुछ समय पहले तक काम करने वाले का नेटवर्क इतने राज्यों तक कैसे फैल गया?
कुछ समय पहले तक चार अंकों की सैलरी वाले व्यक्ति के पास महंगी गाड़ियों का काफिला कहां से आया?
क्या बिना राजनीतिक संरक्षण के इतनी बड़ी तस्करी संभव है?
सूत्रों का दावा है कि शुभम जायसवाल को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था। अपुष्ट सूत्र बताते हैं कि एक स्थानीय उभरते हुए भगवाधारी नेता का भी उसके ऊपर हाथ है। क्यों? एक व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर सिर्फ इतना कहा-
‘सब अर्थशास्त्र का कमाल है!’
कैसे सामने आया नाम?
सोनभद्र पुलिस की सूचना पर 3 नवंबर को गाजियाबाद में चार ट्रक प्रतिबंधित कफ सिरप बरामद किए गए। यह खेप बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के रास्ते बांग्लादेश भेजी जानी थी। पूछताछ में वाराणसी के शुभम जायसवाल का नाम सामने आया।
सूत्रों के मुताबिक, मुकदमा दर्ज होने के बाद से वह और उसके करीबी भूमिगत होने का प्रयास कर रहे हैं। हाल ही में वह सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीरें डालता दिखा, जिनमें वह पूर्वांचल के एक पूर्व सांसद के साथ नजर आया। पुलिस का कहना है कि उसका मैदागिन क्षेत्र में मेडिकल स्टोर भी है।
शहर में अवैध होर्डिंग और 5 लाख हर्जाना?
शहर के लोगों का कहना है कि कुछ दिन पहले शुभम ने वाराणसी में कई जगह बिना परमिशन बड़े-बड़े होर्डिंग लगवा दिए थे। नगर निगम ने इन्हें उतरवाया और अपुष्ट सूत्रों के अनुसार, इसके बदले में उससे 5 लाख रुपये का हर्जाना वसूला गया।
सवाल ये है कि ऐसी हिम्मत किसके भरोसे?
तस्करी का फैलता जाल
18 अक्टूबर को सोनभद्र में पकड़ी गई ट्रक से मिले इनपुट ने पूरी जांच को नई दिशा दी। रांची से भी एक ट्रक पकड़ा गया। पुलिस का दावा है कि यह गिरोह उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, बंगाल और बांग्लादेश में फैला था।

अब जांच इस बात पर टिकी है कि-
वाराणसी के सप्तसागर दवा मंडी से इस नेटवर्क का क्या संबंध है ?
क्या यहां से कोई बड़ा ‘सप्लाई चैनल’ वर्षों से सक्रिय था?
और सबसे बड़ा प्रश्न-यह जड़ें आखिर कितनी गहरी हैं ?
तफ्तीश जारी है, लेकिन सवालों की संख्या हर दिन बढ़ती जा रही है।








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